Sadhana Shahi

Add To collaction

एकाकी जीवन (कविता) प्रतियोगिता हेतु28-Feb-2024

दिनांक -28.02.2024 दिवस- बुधवार प्रदत विषय- एकाकी जीवन (कविता) प्रतियोगिता हेतु

छल व प्रपंचों ने डाला है डेरा, तन्हाई ने आके मुझको है घेरा।

जीवन में रजनी पसरी है ऐसी, खोया कहीं है मानो सवेरा।

आबो हवा भी विषैली हुई है, लगता कहीं भी ना मन है मेरा।

वफाओं के बदले ज़फा मुझको देकर, पतझड़ का तुमने किया है बसेरा।

एहसान तेरा है मेरे दिलपर, चुकाऊँ भला कैसे यह क़र्ज़ तेरा।

मेरे चित्त में कहकहे राज करते, अश्कों को तुमने मेरी ओर फेरा।

तुमसे मुकम्मल होगी मेरी दुनिया, मेरे दिल में अब तो बना लो तुम डेरा।

मशहूर होने की चाहत नहीं है, नाचीज में बस बन जाऊंँ केरा।

साधना शाही, वाराणसी

   3
2 Comments

बहुत ही सुंदर सृजन

Reply

Gunjan Kamal

28-Feb-2024 12:05 PM

👏👌

Reply